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jeevan mrityu

Dr.satyendra singh
Dr.satyendra singh
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वज्ञानिक तथ्य ये कहते हैं की पूरे ब्रह्माण्ड में , पथार्थ और उर्जा एक निश्चित मात्र में हैं , और ये संतुलित रूप में एक दूसरे में परिवर्तित होते रहते हैं.

इस अवधारणा के अनुसार अगर हम देखें तो न कुछ उत्पन्न हुआ न नष्ट.

फिर भी

प्रकृति में वस्तुएं , जीव उत्पन्न भी होते हैं और नष्ट भी

सब कुछ नश्वर होते हुए भी परिवर्तनशील है

लेकिन कोई भी पदार्थ अपने स्थिति में परिवर्तन नहीं चाहता ये भी सत्य है
न्यूटन के नियम के अनुसार कोई भी वास्तु अपने स्थान को नहीं छोड़ना चाहती जब तक की उस पर कोई बाह्य बल न लगे .

तूफ़ान की तरह बहती नदी से एक किनारा भी काटने से पूर्व कितना संघर्ष कटा है , छोटी सी बात है लेकिन म,अहत्वपूर्ण है विषय को समझने के लिए ,

ये प्रक्रितक जन्य मोह के कारन है , और अगर मोह न हो तो भी जीवन का आनंद नहीं है,

परम पिता परमात्मा ने या प्रकृति ने ये सब क्यूँ उत्पन्न किया ? ये भी तो शोध का विषय है

क्या इसका कोई उत्तर है किसी के पास ?

मेरे पास तो निश्चित ही नहीं है:)

महाभारत में यक्ष का युधिष्ठर से प्रश्न की हे युध्श्थर संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?

और युधिष्ठर का कालजयी उत्तर – की हे प्रश्न करता हमारी आँखों के सामने हमारे सभी प्रियजन एक एक कर इस संसार से विदा हो जाते हैं फिर भी इस जीवन से प्राणियों का मोह नहीं छूटता , इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है ?:)

मोह क्यूँ नहीं छूटता -क्यूंकि

प्राणी मात्र केवल पृथ्वी जल आकाश, वायु, और सूर्य(तेज -उर्जा) से ही नहीं बना

यदि मात्र इन्हीं से बना होता तो हम मन की गति भी नाप सकते थे

यक्ष प्रश्न ये भी था की संसार में सबसे तेज गति किसकी है, उत्तर था मन की .

यदि प्राणी मात्र केवल इतना ही होता तो निश्चित जानिये की आप ये विषय उठा ही नहीं रहे होते या फिर ये विषय विकार ही न होते और न ही मैं एहन बैठ कर , अपनी बुध्हिअनुसार कोई टिपण्णी ही लिख रहा होता

इन मूल पञ्च तत्वों के साथ जब और तत्वों का प्रवेश हुआ तो , प्रकृति में मानवरूपी जानवर का विकास भी हुआ
🙂

जिस प्रकार algae amoeba से होता हुआ जीवन मनुष्य तक पहुंचा , ८४ लाख परिवर्तनों के बाद ( ८४ लाख योनियों यानि परिवर्तनों के पश्चात मानव रुपी जीव की काया में आत्मा रुपी उर्जा पहुंची)

विज्ञानं ने कितने रूप दिखाए हैं समुद्र से लेकर मानव योनी तक जीवन की उत्पत्ति के ये मैंने गिना नहीं .

तो इन पञ्च तत्वों के साथ , रक्त कैसे बना, कोशिकाएं क्या है? इन सबकी जानकारी तो विज्ञानं को हुयी , लेकिन मन क्या है , कैसे बना इसका विज्ञानं के पास अभी भी कोई उत्तर नहीं है

जब प्राणी शरीर के साथ सात्विक, राजसी, तामसी प्रव्रत्तियों का प्रवेस
हुआ

जब आकास से हमेर शब्द की और वायु तत्त्व से स्पर्श की शक्ति प्राप्त हुयी,

त्वचा , नेत्र, नासिका, जिव्हा, एवं श्रवण इन शक्त्यिओन का प्राणियों में संचार हुआ , और साथ में मिलीं गुदा, लिंग, हाथ , पैर , और बोलने की शक्ति

ये प्रकृति में स्थित शक्तिया प्रथक प्रथक होकर संसार रुपी माया जाल की रचना नहीं कर सकतीं

इस्सेलिये एक दूसरे के आश्रित रहने वाली इन शक्तियों ने एक निश्चित दिशा में लक्ष्य लेकर, परस्पर मिल कर एक विशाल लक्ष्य की और इंगित , प्रथम एंड की रचना , समुद्र जल में की.

और इस एंड का आवरण किस्से बना?

तामस, अहंकारी महत्व से

परस्पर मिलने के मोह से

एवं प्रकृति जन्य विधंस से

विषय थोडा भटका हुआ प्रतीत हो रहा होगा किनती जब तक विषय के मूल में नहीं जायेंगे इसकी विवेचना संभव नहीं है

मुनिवर! आपकी बात तथ्यात्मक है की जब सब कुछ नश्वर है तो विलाप कैसा, ?

येही माया है

और माया ही मोह का कारन है

विलाप के बिना प्रसन्नता का अहसास नहीं , प्रसन्नता के बिना विलाप का.

आप तो रामायण के ज्ञाता हैं, प्रभु राम भी लुक्स्मन के शक्ति लग जाने पर कैसा प्रलाप करते हैं , आप जानते ही हैं

आपकी अभिव्यक्ति पर सार्थक टिप्पणियां आयें इस मोह से \न आप बच सकते हैं न मैं , फिर जीवन के मोह से कैसे बचा जा सकता है ?

ये भी तो यक्ष प्रश्न है??????

सादर

डॉ. सत्येन्द्र सिंह

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